Monday, September 1, 2008

जस्बात



युहीं चलते हुए बरसों गुज़र गए,
तुम्हे हस्ते हुए देख हम तो बदल गए;
अब याद नहीं की तेज़ कदम कब थे,
तुम्हारे साथ ज़िन्दगी के रुख ही बदल गए;
आँखों को बंद करते ही हमारे सामने आ गए,
तबस्सुम अब होटों पे खिलते चले गए;
स्याह दिल में कुछ सफ़ेद धब्बे भी थे,
खवाबों में आप हमारे साये बन गए;
कबसे जलते हुए हम तो राख हो गए,
सोते हुए राख आखों का काजल बन गए;
अब फ़िक्र नहीं की आखों में कभी आंसू भी थे;
दिल के जस्बात आज होटों पे आ गए।

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