Monday, September 1, 2008

वो राह



सामने नज़र आता वो रास्ता अब सुना सा है,
क़दमों के निशान भी मिट चुके;

धूल भी उड़ते परहेज़ करती है,
दरख्तों के दम भी टूट चुके;

वो राह पहले जैसी अब तो नही है,
सड़क किनारे सामान बेचते लोग फ़ना हो चुके;

हवा का दम तो घुट चुका है,
मोटरों के धूवों में साइकिल खो चुके;

हर तरफ़ का रंग अब बदला सा है,
उस राह के सारे मौसम जा चुके;

सुखी डाली आपस में टकरा के आवाज़ करती है,
आवाजों के डर से सारे सूखे पत्ते जल चुके;

आग लगी नही, लगाई गई है,
पानी को रेत अपने में जज्ब कर चुके;

हरियाली अब आखों के बहते आंसू में रहा करती है,
रोशनी के अंधेरों से सब सहम चुके;

फिर भी दिल उस राह को याद करता है,
चाहे जितने अरसे बीत चुके;

तमन्नाओं का ख्वाब अब तक सजा हुआ है;
शायद किस्मत वो दास्तान फ़िर से दोहरा सके

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