Tuesday, September 1, 2009

कल की बात लगती है

कल की बात लगती है,
थोडी नई थोडी पुरानी सी दिखती है,
टिमटिमाते तारों जैसी ये यादें हैं,
थोडी सोई सी थोडी जागी सी बातें हैं,

याद है हमे वो दिन,
सारा दोपहर चप्पलों के बिन,
लूह की तपती गर्मी में,
हम छिपे रहते थे आम के पेडों में,

कल की बात लगती है,
आंख थोडी नम सी दिखती है,
धुंधले ही सही लेकिन हैं तो अपने,
थोडे हैं असली और थोडे से सपने,

याद है हमे वो बारिश का मौसम,
रिमझिम रिमझिम भीगते तुम और हम,
छाता फ़ेंक कर भागते रहना सड़कों पे,
चाहे बुखार आ जाय बरसात की काली रातों मे,

कल की बात लगती है,
होटों पे हलकी मुस्की सी आती है,
बीत चुके हैं, बची हैं बस यादें,
छोटी मोटी कुछ अनकही सी बातें;

याद है हमे वो पहला थप्पड़,
खाया था जो अब्बा से नरम गालों पे लप्पड़;
आवाज़ भीग गए थे आसुओं से,
और अम्मी देती थीं मुझे पैसे मनाने के;

कल की बात लगती है,
आगे आते आते वो पीछे रह जाती है,
यह भूली बिसरी सी यादें हैं,
पुरानी ही सही लेकिन इसमे कई बातें हैं

अनीस

4 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

sunder rachna.
ब्लॉग जगत में स्वागत है.

swapnyogeshverma.blogspot.com
swapnyogesh.blogspot.com

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर.
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

गुलमोहर का फूल

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

संजय भास्‍कर said...

रचना अच्छी लगी.

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.


http://sanjay.bhaskar.blogspot.com