
आवाज़ दे कर छिप न जाना कहीं पे,
की ये दिल ढूंढे तुम्हे बार बार;
सूरज की किरणों का आँचल सजा के,
सागर की लहरों को बना लूँ मै यार;
दिया है दोबारा से दस्तक साहिल पे,
की टकराके किया है लहरों ने प्यार;
बहता है पानी प्यासे से रेत पे,
कभी दूर कभी पास पास;
अरमां कभी दिल में बन के बिगड़ के,
तैरते रहे उस कश्ती के साथ;
आयेगा कभी आखों में मोहब्बत से भर के,
ले जाएगा मुझे समंदर के उस पार;
इंतज़ार में उसके न जाने कबसे,
आंसू भी घुलते रहे लहरों के साथ;
छूती हैं लहरें आगोश में भर के,
की देती हैं एक अलग सा एहसास;
पानी में पुकारती हैं मौजें खुशी से,
की लहरों की दुनिया है ही लाजवाब.